01 अक्तूबर, 2013

छेड़छाड़ शब्दों से



की शब्दों से छेड़छाड़
अर्थ का अनर्थ हुआ
सार्थक सोच न उभरा
सभी कुछ बदल गया |
क्या सोचा क्या हो गया
प्यार ने भी मुंह मोड़ा
गुत्थी सुलझ न पाई
अधिक ही उलझ गयी |
हेराफेरी नटखट शब्दों की
बनती बात बिगाड़ गयी
अलगाव बढ़ता गया
उलझनें बढ़ा गयी |
यह न सोचा था उसने
इस हद तक बात बढ़ेगी
जिसका प्रभाव भूकंप सा
इतना तीव्र होगा
वह एकाकी उदास
खँडहर सा रह जाएगा |


9 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों की बाजीगरी कभी-कभी भारी भी पड जाती है इसमें कोई संदेह नहीं है ! सार्थक रचना !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (02-10-2013) नमो नमो का मन्त्र, जपें क्यूंकि बरबंडे - -चर्चा मंच 1386 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    महात्मा गांधी और पं. लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धापूर्वक नमन।
    दो अक्टूबर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. शायद इसी लिए कहते हैं तोल मोल के बोलना चाहिए ...

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