की शब्दों से छेड़छाड़
अर्थ का अनर्थ हुआ
सार्थक सोच न उभरा
सभी कुछ बदल गया |
क्या सोचा क्या हो गया
प्यार ने भी मुंह मोड़ा
गुत्थी सुलझ न पाई
अधिक ही उलझ गयी |
हेराफेरी नटखट शब्दों की
बनती बात बिगाड़ गयी
अलगाव बढ़ता गया
उलझनें बढ़ा गयी |
यह न सोचा था उसने
इस हद तक बात बढ़ेगी
जिसका प्रभाव भूकंप सा
इतना तीव्र होगा
वह एकाकी उदास
खँडहर सा रह जाएगा |
शब्दों की बाजीगरी कभी-कभी भारी भी पड जाती है इसमें कोई संदेह नहीं है ! सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (02-10-2013) नमो नमो का मन्त्र, जपें क्यूंकि बरबंडे - -चर्चा मंच 1386 में "मयंक का कोना" पर भी है!
महात्मा गांधी और पं. लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धापूर्वक नमन।
दो अक्टूबर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया,सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
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टिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंbahut hi sundar lekhan ... uttam bhav.
जवाब देंहटाएंशायद इसी लिए कहते हैं तोल मोल के बोलना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ठीक कहा है |
हटाएंआशा
bhaut hi khubsurat.....
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