नित्य नए प्रसंग
देखने सुनाने को मिलते
शान्ति भंग करते
वारों पर वार तीखे प्रहार
कम होने का नाम न लेते
टिकिटों की मारामारी
ऐसी कभी देखी न थी
मिले न मिले
पर जान इतनी सस्ती न थी
टिकिट ना मिला तो जान गवाई
यह तक न सोचा
क्या यह इसका कोई हल है ?
जीवन इतना सस्ता है
सब्जबाग दिखाए जाते
मन मोहक इरादों के
पर जनता भूल नहीं पाती
उनकीअसली चालाकी
वे बस अभी दिखाई देगें
फिर पांच वर्ष दर्शन ना देगें
वादों का क्या ?
उन्हें कौन पूर्ण करता है
अभी गरज है उनकी
कैसी शर्म घर घर जाने में
आगे तो ऐश करना है
केवल अपना घर भरना है |
कटु सत्य को बयान करती सशक्त व शानदार प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शानदार रचना आशा जी
जवाब देंहटाएंअसलियत बयान करती आपकी सुन्दर रचना , आदरणीय एक विनती एकबार अवश्य पधारने की कृपा करें
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन --: जानिये क्या है "बमिताल"?
बीता प्रकाशन --: प्रतिभागी - गीतकार के.के.वर्मा " आज़ाद " ---> A tribute to Damini
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंखुबसूरत शब्द....शानदार रचना आशा जी
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