रात की तन्हाई में
बारात यादों की आई है
मुदित मन बारम्बार
होना चाहता मुखर
या डूबना चाहता
उन लम्हों की गहराई में
विचार अधिक हावी होते
पहुंचाते अतीत के गलियारे में
आँखें नम होती जातीं
केनवास से झांकते
यादों के चित्रों की
हर खुशी हर गम में
चाहती हूँ हर उस पल को जीना
उसमें ही खोए रहना |
जो सुकून मिलता है इससे
लगता है रात ठहर जाए
मैं उन्हीं पलों में जियूं
कभी दूर न हो पाऊँ |
आशा
वाह ! क्या बात है ! आज तो बड़ी ही प्यारी कविता पोस्ट की है ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार महोदया-
वाह ... मन भावन ...
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएं..... क्या बात है....वाह !
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