हरे भरे इस वृक्ष को
यह क्या हुआ
पत्ते सारे झरने लगे
सूनी होती डालियाँ |
अपने आप कुछ पत्ते
पीले भूरे हो जाते
हल्की सी हवा भी
सहन न कर पाते झर जाते
डालियों से बिछुड़ जाते |
डालें दीखती सूनी सूनी
उनके बिना
जैसे लगती खाली कलाई
चूड़ियों बिना |
अब दीखने लगा
पतझड़ का असर
मन पर भी
तुम बिन |
यह उपज मन की नहीं
सत्य झुटला नहीं पाती
उसे रोक भी
नहीं पाती |
बस सोचती रहती
कब जाएगा पतझड़
नव किशलय आएँगे
लौटेगा बैभव इस वृक्ष का |
हरी भरी बगिया होगी
और लौटोगे तुम
उसी के साथ
मेरे सूने जीवन में |
आशा
आशा तो हरी रहती है ... पतझड़ आते हैं तो जाते भी हैं ...
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar komal bhavsikt ati uttam rachana..
जवाब देंहटाएं:-)
पतझड़ ही स्वागत करता है वसंत को--नए फुल नए किसलय को |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)
कोमल भावनाओं से रची बसी इतनी सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिये अनेक बधाइयाँ ! बहुत ही सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया है आदरणीया
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
जवाब देंहटाएंकल 21/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
भावपूर्ण और प्रभावशाली
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
ज्योति
waahh sundar rachna ... patjhar ke baad vasant ki aash lagaye baitha man .. badhayi ..
जवाब देंहटाएंकोमल भावो की
जवाब देंहटाएंबेहतरीन........
Jeevan Sukh Dukh Ka Sangam Hai.
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