03 दिसंबर, 2013

क्षणिकाएं (भाग २)

(1)
मन से मन की बात यदि ना हो पाए 
मन चाही मुराद यदि मिल न पाए 
मन दुखी तब क्यूं न हो 
बेमौसम का राग वह क्यूँ गाए |
(२)
सुनी गुनी कही बातें 
वजन तो रखती हैं 
पर हैं कितने लोग 
जो उन पर अमल करते हैं |
(३)

मैंने सजाई थी महफिल
हंसने हंसाने को
पर देखी सिर्फ तानाकशी
खुशी गायब हो गयी
ज्ञान न था दिलों में
इतना विष घुला है
प्यार का तो ऊपरी दिखावा है
हर इंसान का दोहरा चेहरा है |..
(४)
 मधुमास में
 पतझड़ की बातें
शोभा नहीं देतीं
खुशी के आलम में
उदासी भर देतीं |
आशा

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