निकले बिल से एक साथ
कुछ कदम भी साथ न चले
छिड़ी दौनों में धमासान
पहले वे हंस बोल रहे थे
फिर बहस ने जगह बनाई
दौनों ने अपने पक्ष बताए
जब इससे मन नहीं भरा
अपशब्दों की बारिश हुई
हाथापाई की नौबत आई
जो बेचारा आया था
वहां बांबी पूजन को
हतप्रभ था यह दृश्य देख
पूजन का थाल हाथ से छूटा
यह कैसा अपशगुन हुआ
शोर बढ़ने लगा भीड़ जुटाने लगी
तालियों के शोर में
असली मुद्दे खो गए
व्यर्थ के तर्क कुतर्क में
सारे कार्य रहे अधूरे
एक भी पूर्ण न हो पाया
सफलता का सहरा
यहाँ वहां सजता रहा
झूमा झटकी में
एकाएक नीचे गिरा
धुल धूसरित हुआ
भीड़ का एक भाग
आँखें फाड़े देख रहा था
सोच भी गायब था
वह किसे पूज रहा था |
आशा
आशा
वाह क्या बात है -क्या बात है दीदी
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
भाव पक्ष बेहद मजबूत-
सादर
धन्यवाद रविकर जी |
हटाएंइंसान भी यही करता है ... नेता तो करते ही हैं ये सब ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ...
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंजैसे साँपनाथ वैसे ही नागनाथ ! न एक किसीसे कम न दूजा ज़्यादा ! इसलिए किसीको भी पूजने से बेहतर है खुद पर विश्वास करें ! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंकोई किसी से कम नही है ....!
जवाब देंहटाएं==================
नई पोस्ट-: चुनाव आया...
utkrisht rachana
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंबढ़िया सामाजिक रूप दिखाती रचना , आदरणीय धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: प्रतिभागी - श्री राजेश कुमार मिश्रा ( आयुर्वेदाचार्य )
धन्यवाद आशीष भाई |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुषमा जी |
हटाएंभावपूर्ण पंक्तियाँ..!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सटीक और ख़ूबसूरत व्यंग...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कैलाश जी |
हटाएंआँख खुले ऐसे ही सही... बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पर आना अच्छा लगता है |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंवाह...
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