वह नाजुक नन्ही कली 
लगती गुणों की टोकरी 
हर पुष्प जिसका 
सुरभि चहु दिश फैलाता 
है किसकी सुगंध अधिक 
मन सोच नहीं पाता 
और विशिष्ट उसे बनाता |
माता पिता उसे सवारते 
विकास में सहयोग करते 
रूप रंग गुणों का 
बखान करते नहीं थकते |
जो भी संपर्क में आता 
बिना कहे न रह पाता 
हैं कितने भाग्यशाली 
ऐसी सुशीला  को पाया
है धन्य उसकी जननी 
गुण संपन्न उसे बनाया 
जिस घर की वह शोभा होगी 
बड़े 
जतन से सहेजेगा 
फूलों की टोकरी को 
बिखरने नहीं देगा |
आशा |


 
 
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-12-2013 को चर्चा मंच की चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
आभार 
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंवाह ! ऐसी सुशीला सबको मिल जाये तो बात ही क्या है ! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसुन्दर भावमय रचना ...
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना ...... सादर !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद |
हटाएंबहुत खूबसूरत....वंदे मातरम्: थकान
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
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