क्यूं सुनाऊँ मैं तुम्हें 
उसकी व्यथा कथा 
तुमने कभी उससे 
प्यार किया ही नहीं |
कुछ अंश ममता का 
उससे बांटा  होता 
नजदीकियां बढ़तीं 
यूं अलगाव न होता |
ऐसे ही नहीं वह
सबसे दूर हो गयी 
प्यार की छाँव से 
महरूम हो गई |
ममता तुम्हारी मात्र 
एक छलावा थी 
काश तुमने उसे 
 नया मोड़ दिया होता |
इस तरह किरच किरच हो 
वह शीशे सी
 ना टूटती 
बिखरती 
यदि तुमने उसे छला न होता |
 आई थी 
रुपहली धुप सी 
दस्तक भी दी थी 
तुम्हारे दिल के दरवाजे पर 
तब सुनी अनसुनी की |
देखा न एक क्षण  को उसे 
स्नेह भरी निगाह से 
हो कर 
उदास बेचैनी लिए 
वह ढली सांझ सी |
इन बातों में
 अब क्या रखा है 
यह तो कल की 
बात हो गयी |
प्यार की चाह में भटकी 
गुमराह हो गयी 
फूल की चाह में 
काँटों से मुलाक़ात हो गयी |
आशा


