है आज सूनी कलाई
बहिन तू क्यूँ नहीं आई
कितना प्यार किया तुझको
फिर भी भूल गयी मुझको |
किस बात पर रूठी है
बताया तो होता
मैं सर के बल चला आता
तुझे लेने के लिए |
तेरी ममता की डोर
इतनी कच्ची होगी
कभी सोचा नहीं था
तेरे बिना है त्यौहार अधूरा
कभी सोचा तो होता |
नहीं चाह फल मिठाई की
ना ही भेट उपहार की
तेरी स्नेह भरी एक
निगाह ही काफी है मेरे लिए |
छोटा हूँ सदा छोटा ही रहूँगा
तुझसे अलग ना जी पाऊंगा
केवल प्यार की है दरकार
वही है नियामत मेरे लिए |
आशा
भाव जी उठे हैं!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुपमा जी |
हटाएंरक्षाबंधन पर यह कमी तो सालती ही है, बहुत सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धन्यवाद टिप्पणी हेतु
हटाएंसुंदर सृजन लाजबाब भावपूर्ण प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
टिप्पणी हेतु आभार
हटाएंभाई बहन के प्यार पर अनूठी रचना
जवाब देंहटाएंatest post नए मेहमान
धन्यवाद टिप्पणी हेतु
हटाएंबहुत भावपूर्ण एवँ तरल सरल रचना ! मन को भिगो गयी ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंभावपूर्ण रचना .... रक्षाबन्धन की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आपको भी
हटाएंभाई बहन के प्रेम के भाव लिए हुए बहुत बेहतरीन रचना !!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंभावपूर्ण सुन्दर रचना .... रक्षाबन्धन की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआपको भी हार्दिक शुभ कामनाएं रक्षाबंधन पर
हटाएंअनोखा बंधन
जवाब देंहटाएंअनोखा प्यार
है ये राखी का
त्यौहार
बचपन की यादें
खूब सारा लाड़-प्यार
अनोखा है आज भी
ये राखी का त्यौहार ||
बढ़िया टिप्पणी है जी
हटाएंबहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती, आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राजेन्द्र जी
हटाएंदिल नम हो गया ये पढ़कर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद
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