अनगिनत सवाल
अनुत्तरित रहते
जिज्ञासा शांत न
होती
जब मन में घुमड़ते
|
अशांत मन भटकता
अस्थिर बना रहता
कहीं टिक न पाता
रहता बेचैन रात
दिन |
सोचती हूँ
यह जन्म मिला ही क्यूं
यदि मिला भी तो
दिमाग दिया ही
क्यूं
रखा संतोष
सुख से दूर क्यूं ?
रह गयी कमीं
सबसे बड़ी
सब कुछ पाया
पर संतोष धन नहीं |
कहावत खरी न उतरी
संतोषी सदा सुखी
अब यही कष्ट
सालता है
हुआ वह दूर
क्यूं ?
बेहद उम्दा. उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंसादर,
हिमकर श्याम
http://himkarshyam.blogspot.in
टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
हटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर |
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारती जी |
हटाएंबेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी |
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी से लिखने के लिए ऊर्जा मिलाती है |
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, माँ सरस्वती पूजा हार्दिक मंगलकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंआपको भी शुभ कामनाएं इस अवसर पर |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसंतोष धन के बिना सब धन बेकार .. संतोष सबसे बड़ा धन है . सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंसुंदर रचना ! जब संतोष धन मिल जायेगा हर दुःख दूर हो जायेगा ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंकुछ सवाल यूँ ही रह जाते हैं.. बहुत सुंदर..
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