14 फ़रवरी, 2014

जो चाहा

जो चाहा जैसा चाहा
जितना चाहा पाया
पर प्यार भरा दिल
न पाया कितना सताया |
ममता की मूरत
दिखती हो पर हो नहीं
जाने क्या सोचती हो
मन समझ न पाया |
यह व्यवहार तुम्हारा
मन को दुखित कर जाता
दोहरा वर्ताव किस लिए
आज तक जान न पाया |
आशा

18 टिप्‍पणियां:


  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अब मृत परिजनों से भी हो सकेगी वीडियो चैट - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. मन परिवर्तनशील है ,उसे जब तक समझो तब तक वह बदल जाता है ...रहसयमय है NEW POST बनो धरती का हमराज !

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    1. मन में होते परिवर्तन यदि मुखौटे के पीछे छिप जाएं तब बहुत कष्ट होता है |

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (15-02-2014) को "शजर पर एक ही पत्ता बचा है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1524 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    अलविदा प्रेमदिवस।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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