24 फ़रवरी, 2014

सरिता तीरे

सरिता तीरे 
दो सूखे साखे वृक्ष 
है विडम्बना |

मैं और तुम
नदी के दो किनारे 
कभी न मिले |

मन बेचैन 
उफनती  नदी सा 
हुआ न शांत |

मन टूटा था
 नदी पर बाँध सा 
प्रेम न रहा |
 हुई ठूंठ मैं 
इंतज़ार पर्णों का 
हुआ प्रभात |
ना यह दिल
 है मेरा आशियाना
हूँ यायावर |
आशा




13 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चित्रों के साथ बहुत सुंदर हाईकू ! दोनों मिल कर मन पर गहन असर डालते हैं ! बहुत बढ़िया !

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  2. बढ़िया प्रस्तुति- -
    आभार आदरणीया -

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  3. आदरणीया आपके हाइकु सजीव है
    खूबसूरत चित्र शोभा बढ़ा रहे हैं
    सादर

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  4. चित्रों पे सटीक बैठते सभी हाइकू ... लाजवाब ...

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  5. टिप्पणी हेतु धन्यवाद भारती जी

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