वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया
गगन चूमने की चाह जगी
ऊपर उठना चाहा
निराशा सह न पाई
उसे पीछे खींच लाई
कभी यह तो कभी वह
रहती इच्छाएं अनंत
सोच नहीं पाता
क्या करे किसका साथ दे ?
त्रिशंकु हो कर रह गया
दौनों की खीचतान में
आशा तो आशा है
पूर्ण हो ना हो
जाने क्या भविष्य हो
पर निराशा देखी है
यहीं इसी जग में |
आशा
आशा निराशा के मध्य यह लड़ाई ही तो जीवन है , मंगलकामनाएं आपको !!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सतीश जी |
हटाएंमानसिक द्वंद्व को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है ! एक सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंजीवन -पतंग आशा के डोर के सहारे उड़ता है निराश उस डोर को काटने की कोशिश करता है ..यही जिंदगी है !
जवाब देंहटाएंnew post शिशु
New post: किस्मत कहे या ........
अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआशा और निराशा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं .....और यही जीवन है.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .....