22 फ़रवरी, 2014

आशा निराशा



वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया
गगन चूमने की चाह जगी 
ऊपर उठना चाहा
निराशा सह न पाई
उसे पीछे खींच लाई
कभी यह तो कभी वह
रहती इच्छाएं अनंत
सोच नहीं पाता
क्या करे किसका साथ दे ?
त्रिशंकु हो कर रह गया
दौनों की खीचतान में
आशा तो आशा है
पूर्ण हो ना हो
जाने क्या भविष्य हो
पर निराशा देखी है
यहीं इसी जग में |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. आशा निराशा के मध्य यह लड़ाई ही तो जीवन है , मंगलकामनाएं आपको !!

    जवाब देंहटाएं
  2. मानसिक द्वंद्व को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है ! एक सार्थक प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  3. जीवन -पतंग आशा के डोर के सहारे उड़ता है निराश उस डोर को काटने की कोशिश करता है ..यही जिंदगी है !
    new post शिशु
    New post: किस्मत कहे या ........

    जवाब देंहटाएं
  4. आशा और निराशा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं .....और यही जीवन है.....
    बहुत सुंदर रचना .....

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: