खेल खेल में मन उलझा
नई पुरानी यादों में
किसी ने दी खुशी
कुछ शूल सी चुभीं |
इसी चुभन ने भटकाया
खेल में व्यवधान आया
मित्रों ने भांप लिया
खेल रोक कर समझाया |
पहले खेल फिर कुछ और
है बड़ी काम की बात
सफल जीवन में
जीत का है यही राज़़ |
अवधान किया केन्द्रित
खेल में व्यस्त हुआ
सोच ने ली करवट
यादों में मिठास घुली |
है यह कैसा टकराव
नहीं स्थाईत्व किसी में
जब उभर कर आता
मन उद्वेलित हो जाता |
खेल में जीत हार
एक लंबा सिलसिला हुआ
विचारों का सैलाव आया
कविता का जन्म हुआ |
जब वर्तमान भी जुड़ने लगता
भाव तरंगित होते
शब्द प्रवाहित होते
सोचने को बाध्य करते |
क्या है यही कहानी
खेल खेल में
शब्दों के उछाल की
कविता के जन्म की |
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (20-03-2014) को एक बरस के बाद फिर, बरसेगी रसधार ( चर्चा - 1557 ) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
सूचना हेतु आभार सर |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत हि सुंदर , आदरणीय धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
धन्यवाद सर |
हटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद दी |
हटाएंखेल में जीत हार
जवाब देंहटाएंएक लंबा सिलसिला हुआ
विचारों का सैलाव आया
कविता का जन्म हुआ |
वाकई यही कहानी है कविता के जन्म की ! बहुत सुंदर रचना ! बहुत खूब !
धन्यवाद साधना जी |
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद राजीव जी |
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