(१)
है चन्दा या सूरज यह तो पता नहीं
पर जल से है यारी इस में शक नहीं |
(२)
रात कितनी भी स्याह क्यूं न हो
चाँद की उजास कम नहीं होती
प्यार कितना भी कम से कमतर हो
उसकी उन्सियत कम नहीं होती |
(3)
महकता मोगरा
महकता उपवन
बालों में यूं सजता
झूमता योवन |
(४)
खेतों में आई बहार
पौधों ने किया नव श्रृंगार
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता
आशा
(3)
महकता मोगरा
महकता उपवन
बालों में यूं सजता
झूमता योवन |
(४)
खेतों में आई बहार
पौधों ने किया नव श्रृंगार
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता
आशा
bahut -bahut sundar
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद उपासना जी |
हटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पंचतंत्र बनाम ईसप की कथाएँ
धन्यवाद सर |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति ! हर तस्वीर बहुत कुछ कह गयी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना जी |
हटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद धीरेन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंबहुत दिनो बाद आपको देखा है ब्लॉग पर |धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों का सृजन...!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय
हटाएंचित्रों पर शब्दों कि सुन्दर भावनाएं....
जवाब देंहटाएं:-)
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
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