02 अप्रैल, 2014

है गुनाहगार तेरी



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है वह गुनाहगार तेरी क्यूं कि
 तू भी कुछ कर सकता है
यह जज्बा तुझमें
 पैदा होने न दिया |
 है तू भी  सक्षम
 हर उस कार्य के लिए
जो वह हाथों में कर के  देती रही  
आगे पीछे घूमती रही
बिना बैसाखी चलना
 तू भूल गया |
आज भी तू कोई कदम
 उठा नहीं सकता
बिना उसके सहारे के |
प्यार और दुलार ने
तुझे अकर्मण्य बना दिया
ना कभी कुछ कर पाया
ना चाहत जागी कर्मठ बनने की
स्वयं कुछ करने की |
पहले माँ के
पल्लू से बंधा रहा
अब हो कर रह  गया है
परजीवी अपनी होनहार पत्नी का |

आशा

20 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक सृजन ! बहुतों की कहानी बयान कर दी ! बहुत सुंदर !

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  2. सच्चाई बयान कर दी आपने . .
    मंगलकामनाएं आपको !

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  3. हाँ आशा जी, बेटा, भाई, पति मतलब कोई भी पुरुष पात्र हो,हर तरह उसका ध्यान रखना ,सेवा करना स्त्री का कर्तव्यमान लिया गया और वे पूरी तरह निर्भर हो गए ,ये तो पुरानी कहानी है .मेरी रिश्ते की जिठानी ,मुझसे बहुत बड़ी ,कहा करती थीं ,आदमी को ऐसा बना दो कि उसे ये लगने लगे कि तुम्हारे बिना उसका काम ही नहीं चल सकता ,वो तुम्हारे बिना रह ही नहीं सकता .मुझे सुन कर हँसी आती थी पर ,ये उन महिलाओं की अपनी मजबूरी रही होगी क्या करतीं ,बेचारी ,इसी तरह अपना महत्व स्थापित करना ,अपनी अनिवार्यता बनाए रखना उनके लिए ज़रूरी हो गया होगा .
    समय के साथ बदलाव आयेगा .

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    1. मैं आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ |आश्चर्य तो यह है कि आज भी कई धरों में यह नजारा देखा जा सकता है |

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  4. बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  5. धन्यवाद रश्मि जी टिप्पणी हेतु |

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