04 अप्रैल, 2014

शब्दबाण



तरकश से निकला तीर
 बापिस नहीं आता
हृदय बींधता जब
खोता जाता संयम |
भूलना भी चाहता पर
धैर्य साथ न देता
घाव अधिक गंभीर
नासूर होता जाता |
शब्द चुभ कर रह जाते
चुभन शूल की देते
शेष रहे जीवन की
शान्ति भंग कर जाते |
कभी याद आता फेंका गया
वह मखमल में लिपटा जूता
जिसे भुलाना संभव नहीं
 केवल पीर ही देता |
वह मृदुभाषी पहले भी न था
अपेक्षा भी नहीं थी
पर यह कैसे भूल गया
 कहाँ लगेगा शब्दबाण
कितनों को आहात करेगा
प्रतिशोध का कारण तो न होगा ?

28 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात मौसी
    सटीक बात कही आपने
    सादर

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  2. बेहद खूबसूरत तारतम्य नदी कि धारा जैसी प्रवाहमय कृति। बेहद लाज़वाब, ये आपकी अभिव्यक्ति
    एक एक शब्द सटीक और यथार्थ को बयाँ करती हुयी।
    हार्दिक बधाई

    एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''भूल कर भी, अब तुम यकीं, नहीं करना''

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  3. यथार्थ को बयाँ करती हुयी बहुत सुंदर रचना..

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  4. आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति ! हर शब्द एक अनकही टीस लिये ! बहुत बढ़िया !

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  6. Beautiful..like the saying goes..never underestimate the power of words, words hurt even more than actions..:)

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    हिंदी ब्लॉग जगत में एक नए ब्लॉग की शुरुवात हुई है कृपया आप सब से विनती है कि एक बार अवश्य पधारें , व अपना सुझाव जरूर रक्खें , धन्यवाद ! ~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )

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  9. क्या बात है। लाजवाब रचना।

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  10. सुन्दर...... लाजवाब .....सही बात

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  11. शब्दों की मार बड़ा गहरा घाव दे जाती है .

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