07 अप्रैल, 2014

वह क्या जाने पीर





वह क्या जाने पीर हार की
जो कभी हारा ही नहीं
आहत मन ही जानता है
महत्व चोट के अहसास की
सड़क से पत्थर
तभी हटाया जाता है
जब कोइ ठोकर खाता है
स्वस्थ शरीर उत्फुल्ल मन
तभी होता है जब कभी
अस्वस्थता का फैलता जहर
महसूस किया हो
बचने के लिए उससे
कई प्रयत्न किये हों |
आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 09 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बिलकुल सही कहा आपने ! रोशनी का महत्त्व वही समझ सकता है जिसने गहन अन्धकार का दर्द झेला हो ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !

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  3. सच ही कहा गया है 'जाके पैर न फटी विबाई वो क्या जाने पीर पराई।'
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार आपका ...

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  4. बढ़िया व सुंदर बात , आ. धन्यवाद !
    नवीन प्रकाशन -: साथी हाँथ बढ़ाना !

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