वह क्या जाने पीर
वह क्या जाने पीर हार की
जो कभी हारा ही नहीं
आहत मन ही जानता है
महत्व चोट के अहसास की
सड़क से पत्थर
तभी हटाया जाता है
जब कोइ ठोकर खाता है
स्वस्थ शरीर उत्फुल्ल मन
तभी होता है जब कभी
अस्वस्थता का फैलता जहर
महसूस किया हो
बचने के लिए उससे
कई प्रयत्न किये हों |
आशा
आपकी लिखी रचना बुधवार 09 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बिलकुल सही कहा आपने ! रोशनी का महत्त्व वही समझ सकता है जिसने गहन अन्धकार का दर्द झेला हो ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसच ही कहा गया है 'जाके पैर न फटी विबाई वो क्या जाने पीर पराई।'
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार आपका ...
sahi baat ki aapne aasha ji
जवाब देंहटाएंकोई जान भी नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंबढ़िया व सुंदर बात , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: साथी हाँथ बढ़ाना !