27 जुलाई, 2014

दोहे


 
माँ की ममता पुत्र पर ,बेटी देख रिसाय |
तेरा कैसा न्याय प्रभू,कुछ भी समझ न आय ||

यहाँ वहाँ क्या देखते ,जीवन छूटा जाय |
प्रभु सुमिरन करते रहो ,अंत भला हो जाय ||

जीव न जादू की छड़ी,छूते ही कुम्हलाय |
कठिन डगर पार करके ,फल तुरतही मिल जाय ||

जल अथाह समुन्दर में .कभी कमीं ना होय |
सूरज कितना भी तपे, जलनिधि सूख न पाय ||

मानस से जो प्यार करे ,कष्ट उसे ना सताय |
नियमित पाठ करे जितना ,जनम सफल हो जाय |
आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: