01 अक्तूबर, 2014

वह खोज रहा






अस्थिर मन वह खोज रहा
अपने प्यार की मंजिल
भटक गया था राह से
घिर कर आपदाओं से |
अब खोजता
बाधा विहीन सुगम सरल
सहज मार्ग
उस तक पहुँचने का |
है मन में खलबली
कहाँ जाए किधर जाए
कहीं वह भूली तो न होगी
जाने क्या सोचती होगी |
क्या सजा देगी वादा खिलाफ़ी की
समय पर पहुँच न सका
इतनी सरल भी नहीं
की बातों पर विश्वास कर ले |
नाराजगी उसकी झेलना
 इतना  नहीं आसान
मान भी गई यदि
मन में तो दुखी होगी |
बेचैनी जाती नहीं
प्रश्न पीछा नहीं छोड़ते
कैसे उबर पाए
उस तक पहुँच पाए |

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