25 अक्टूबर, 2014

और मैं खो जाती हूँ





यह प्यार दुलार जब भी पाया
था वह केवल बचपन ही  
आते जाते लोग भी प्यार से बुलाते
हंसते हंसाते बतियाते खेलते खाते खिलाते
कब समय गुजर गया याद नहीं
बस शेष रहीं यादें
बंधन विहीन उन्मुक्त जीवन
तब कभी भय न हुआ
डर क्या होता है तब न जाना
आज हर पल जिसके साए में रहते
फिर क्यूं न याद करें
उस बीते हुए कल को
जब सब अपने थे गैर कोई नहीं
आज होने लगा है एहसास पराएपन का
दिखावटी प्यार जताते घेरा डाले
न जाने कहाँ की बातें करते
अपनत्व जताते अजनवी चेहरों का
पर कभी भी साथ न देते
मतलब साधना कोई उनसे सीखे
यही विडम्बना जीवन की
खींच  ले जाती मुझे बीते कल में
उनींदी पलकों में पलते बचपन के सपनों में
और मैं खो जाती हूँ यादों की दुनिया में |
आशा


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