प्रीत की यह रीत नहीं
अनजान नहीं अब वह भी
फिर भी खोई रहती है
हर पल उस में ही |
उसे वही चाँद चाहिए
जीने का अरमां चाहिए
हार अपनी कैसे माने
उसे सहन न कर पाती |
बचपन में सब बंट जाता था
क्रोध कभी भी ना आता था
भूले से यदि आया भी
माँ बड़े प्यार से समझाती थी |
माँ बड़े प्यार से समझाती थी |
तुम बड़ी हो त्यागी बनो
मेरा तेरा नहीं करो
सब को देकर ही खाओ
प्यार पनपता जाएगा |
सब को देकर ही खाओ
प्यार पनपता जाएगा |
पर अब सर्वे सर्वा है
कुछ भी छिपा नहीं उससे
अपना प्यार किसी से बांटे
कल्पना तक कर नहीं पाती
अपना एकाधिकार चाहती |
आशा
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