30 नवंबर, 2014

निर्विकार



है निरीह
 निर्विकार आत्मा
बंधक है
 तन के पिंजरे में
पञ्च तत्व से
 निर्मित है जो
आसान नहीं उसे छोड़ना
है बैचैन बहुत   
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
है बेकरार उन्मुक्त होने को
नहीं चाहती कोइ बाधा
चाहती मुक्ति
तन के पिंजरे से |
एक ही है लक्ष्य
बंधन रहित उन्मुक्त जीवन
वादा  चाहती परब्रह्म से
किये अनगिनत प्रयास
कोई तो सफल हो
परमात्मा की दृष्टि पड़े
 और वह मुक्त हो |
आशा

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