है निरीह
निर्विकार आत्मा
बंधक है
तन के पिंजरे में
पञ्च तत्व से
निर्मित है जो
आसान नहीं उसे
छोड़ना
है बैचैन बहुत
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
है बेकरार उन्मुक्त होने को
नहीं चाहती कोइ
बाधा
चाहती मुक्ति
तन के पिंजरे से |
एक ही है लक्ष्य
बंधन रहित उन्मुक्त जीवन
वादा चाहती परब्रह्म से
किये अनगिनत
प्रयास
कोई तो सफल हो
परमात्मा की
दृष्टि पड़े
और वह मुक्त हो |
आशा
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