28 नवंबर, 2014

उन्नयन


 

उलझे उलझे से बाल
लिए विचारों का सैलाव
पहना आधुनिक लिवास
कैसे उसे कोई पहचाने
समय बदला वह बदली
झूठा मुखौटा  ओढ़ा
समय के साथ चली
फिर भी कसक रही मन में
किसने बाध्य किया
 इस परिवर्तन के लिए
पहले थी वह सुप्त
देख समाज की ओर
भ्रमित होती  रही
 खुद में ही सिमटी रही
अब उसने खुद को पहचाना
नारी के महत्व को जाना
आज है वह समर्थ

सजग सक्षम सचेत

नहीं कमतर किसी से

कुछ करने की अभिलाषा
मन में सजोए है
 यह है एक  कहानी
नारी में आए  परिवर्तन की
उसके उन्नयन की | 
आशा








 


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