उलझे उलझे से बाल
लिए विचारों का सैलाव
पहना आधुनिक लिवास
कैसे उसे कोई पहचाने
समय बदला वह बदली
झूठा मुखौटा ओढ़ा
समय के साथ चली
फिर भी कसक रही मन में
किसने बाध्य किया
इस परिवर्तन के लिए
पहले थी वह सुप्त
देख समाज की ओर
भ्रमित होती रही
खुद
में ही सिमटी रही
अब उसने खुद को पहचाना
नारी के महत्व को जाना
आज है वह समर्थ नारी के महत्व को जाना
सजग सक्षम सचेत
नहीं कमतर किसी से
कुछ करने की अभिलाषा
मन में सजोए है
यह
है एक कहानी
नारी में आए परिवर्तन की
उसके उन्नयन की |
आशा
आशा
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