चाहत है नन्हां होने की
बरगद का पेड़ नहीं
बोंजाई होना चाहता
वट वृक्ष नहीं
आते जाते सभी
जिसे देख खुश होते
घर की रौनक बढ़ जाती
जब उसका रूप निरखते
प्रकृति के कोप से बचता
मंद पवन को मित्र बनाता
नन्हा बचपन लौट आता
जीवन सुखकर होता
मन में है उथलपुथल
वर्तमान या बचपन
गुत्थी सुलझ नही पाती
मन में रहती उलझन
वर्तमान भी क्या बुरा है
रहता है अपनी मर्जी से
आश्रित नहीं किसी का
मालिक अपनी मर्जी का
जो भी मिला बहुत अच्छा है
और अधिक की चाह नहीं
फिर क्यूं जरूरत आन पडी
नन्हा बच्चा बनने की
कारण एक जान पाया
बचपन तो बचपन है
ना कोई चिंता ना समस्या
जीवन का संचित धन है
फिर ख्याल आता
वर्तमान भी क्या कम है
इसका अलग ही आनंद है
बचपन मात्र कल्पना है
वर्तमान ही अपना है |
आशा
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