है दुविधा मन पर हावी
और राह चुनना भारी
क्लांत मना दोराहे पर खड़ी हूँ
क्लांत मना दोराहे पर खड़ी हूँ
मार्ग भी दृष्टि से ओझल
हर ओर धुंधलका छाया
सर पर न किसी का साया
कड़ी धूप से सहमी हूँ
कड़ी धूप से सहमी हूँ
खुद ही निश्चय करना है
कौनसा मार्ग चुनना है
कौनसा मार्ग चुनना है
कभी सिमटने लगती हूँ
अपने ही विचारों में
सोच भी साथ नहीं देता
मस्तिष्क शिथिल सा हो जाता
जानती हूँ मार्ग तो चुनना ही है
फिर भी अस्पष्ट सोच से घिरी हूँ
पल पल साहस सजो रही हूँ
सही गलत को टटोल रही हूँ
सही गलत को टटोल रही हूँ
शायद सफल हो पाऊँ
कशमकश से उबर पाऊँ |
आशा
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