शून्य में ताकता एक टक
मुस्कुराता कभी सहम जाता
गुमसुम सा हो जाता
चुप्पी साध लेता |
चाहे जहां घूमता फिरता
बिना किसी को बताए
बच्चों की चुहल से त्रस्त होता
पर कुछ न कहता |
लोगों ने उसे पागल समझा
रोका न टोका
कुछ भी न कहा |
आकाश से टपकती जल की बूँदें
उसे उदास कर जातीं
सोचता वे किसी
विरहणी के अश्रु तो नहीं |
उन्हें देख आंसू बहाता
प्रकृति का एक अंश
जाने कहाँ खो जाता
वह सोच नहीं पाता |
कुहू कुहू कोयल की सुनता
अमराई में उसे खोजता
वह हाथ न आती उड़ जाती
वह कारण खोज न पाता |
था यह खेल प्रकृति का
या उसके मन की उलझन
समझ नहीं पाता
अधिक उलझता जाता |
बैठा है आज भी गुमसुम
विचारों का जाल बन रहा
ना हंसना हंसाना
ना ही संभाषण किसी से |
है वह ऐसा ही सब जानते
ना जाने यह तंद्रा कब टूटेगी
वर्तमान में जीने की चाह
मन में जन्म लेगी |
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