04 मई, 2015

राधे राधे कृष्ण कृष्ण



जब से शीश नवाया 
उन चरणों में
एक ही रटन रही
राधे कृष्ण राधे कृष्ण
आस्था बढ़ती गई
नास्तिकता सिर से गई
गीता पढ़ी मनन किया
गहन भावों को समझा
मन उसमें रमता गया
आज मैं मैं न रहा
कृष्णमय हो गया
नयनाभिराम छबि दौनों की
हर पल व्यस्त रखती है
बंधन ऐसा हो गया है
वह बंधक हो गया है
राधे  राधे  कृष्ण कृष्ण |

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