10 जून, 2015

तारों की दुनिया में



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शाम का धुंधलका
रात्रि की प्रतीक्षा
मुझे ले चली
खुले मैदान में |
रात्रि में सितारे
झिलमिलाए टिमटिमाये
यहाँ से वहां जाएं
ले चले अपने साथ में |
विचारों ने उड़ान भरी
माँ ने एक बार बताया था
हर तारा किसी न किसी का
घर होता है  |
मैंने सोचा क्यूं न मैं
अपना घर खोजूं
उस जहां में
सितारों के सान्निध्य में |
जैसे ही कदम बढाए
दृश्य विहंगम  नजर आया
एक समूह   तारों का
दरिया सा नजर आया |
याद आई आकाश गंगा
किताब में कभी पढ़ा था
 समेटे है अनगिनत तारे
 अपने में |
ज़रा भी भ्रम नहीं हुआ देख कर
यही है शुक्र तारा प्यार का सितारा
किसी ने नाम दिया  भोर का तारा
चमक तीव्र इसकी पहचान हुई |
पर एक तारा नन्हां सा
चाँद के पास
इतना मन भाया सोचा
कल यही मेरा घर होगा |
आशा  

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