सावरे तेरे रंग में रंगी
बरसाने की गोरी
मोर मुकुट पर वारी जाए
चंचल चपल चकोरी |
हुई कान्हां की दीवानी
पर प्रीत की रीत न पहचानी
कठिन डगर कंटकों से भरी
यही बात ना जानी |
पीछे पीछे चली चंचला
भाव विभोर हो की आराधना
संग संग चलते चलते
वह कान्हां की होली |
वह कान्हां की कान्हां उसका
एकाधिकार चाहती
बांसुरी तक सौतन लगती
अपना सुख न खोना चाहती |
प्रीत का प्रगाढ़ रंग
भीग भीग जाता तन मन
जमुना तट पर करे रास
राधा मन की भोली |
आशा
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