जब थल से थी यारी जल की
तब कभी उंगली न उठी
जलती थी जब धरा
वर्षा लगी बहुत प्यारी
अब अचानक क्या हुआ
किस नज़र का जुल्म हुआ
न रही चिंता धरती की
ना ही फिक्र जल प्लावन की
हुए व्यस्त अपनी दुनिया में
ना ही रात की खुमारी गई
अभी तक बिस्तर नहीं छूटा
उससे बहुत यारी रही |
आशा
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