05 अगस्त, 2015

अति अधिक ही हो गई

अति अधिक ही हो गई
वर्षा थम न पाई  
लहलहाते पौधे बेचारे
मार उसकी सह न पाए |
झुकने लगे जमीन छूने को
सो गए गहन निन्द्रा  में
कभी न उठने के लिए
मिट्टी में मिलने के लिए |
दी विचारों को हवा
उड़ान भरी विचारों ने
कोई तो साम्य देख पाए  
पौधे और मानव में |
क्षण भर का जीवन दौनों का
समस्त कार्यों के लिए
पूरे हों या अधूरे रहें
है निर्भर वातावरण पर |
अनुकूल या विपरीत
सभी कार्य निर्धारित होते  
प्रारब्ध से संचालित होते
सुख दुःख के झूले में झूलते |
डोर उनकी प्रभु के हाथों में
वही नियंता उनका
अच्छा हो या बुरा कार्य
कोई नहीं रुकता |
आशा

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