हादसों पर हादसे
हद से गुजरे हादसे
दहला जाते दिल
बेरहमीं की मिसाल हादसे |
प्रकृति की या मनुष्य की
या मिली जुली
साजिश दौनों की |
मशीनीकरण के युग में
संवेदना विहीन इंसान
भौंचक्का हो देखता
हादसों का मंजर |
पर कुछ नहीं कर पाता
कारण भी अस्पष्ट नहीं
है फल उसी की करनी का
प्रकृति पर विजय के अहंकार का |
पल पल छेड़ छाड़ उससे
रहता सान्निध्य में जिसके
विज्ञान के नाम पर अब
देने लगा दुःख अथाह |
किसी ने माना प्रकोप
प्रकृति से छेड़ छाड़ का
उसके अनवरत
विदोहन का |
नाम किसी ने दिया
प्राकृतिक आपदा
किसी ने कहा
मनुष्य जन्य आपदा |
हारा हुआ लुटा पिटा
सोच एक व्यथित का यह भी
है कलयुग का प्रारम्भ
मनुष्य चरित्र का विघटन
आगे न जाने क्या होगा |
आशा
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