21 अक्तूबर, 2015

आगे न जाने क्या होगा

प्राकृतिक हादसे के लिए चित्र परिणाम
हादसों पर हादसे 
हद से गुजरे हादसे 
दहला जाते दिल 
बेरहमीं की मिसाल हादसे |
प्रकृति की या मनुष्य की 
या मिली जुली
 साजिश दौनों की |
मशीनीकरण के युग में 
संवेदना विहीन इंसान 
भौंचक्का हो देखता 
हादसों का मंजर |
पर कुछ नहीं कर पाता
कारण भी अस्पष्ट नहीं 
है फल उसी की करनी का
प्रकृति पर विजय के  अहंकार का |
पल पल छेड़ छाड़  उससे 
रहता सान्निध्य में जिसके 
विज्ञान के नाम पर अब
 देने लगा दुःख अथाह |
किसी ने माना प्रकोप 
प्रकृति से छेड़ छाड़ का 
उसके अनवरत 
विदोहन का |
नाम किसी ने दिया 
प्राकृतिक आपदा 
किसी ने कहा 
मनुष्य जन्य आपदा |
हारा हुआ लुटा पिटा 
सोच एक व्यथित का यह भी 
है कलयुग का प्रारम्भ 
मनुष्य चरित्र का विघटन 
आगे न जाने क्या होगा |
आशा








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