चाह नहीं ऐसे दर जाने की
जहां सदा होती मनमानी
वे अपना राग अलापते
साथ चलने से कतराते
घर बना रहता सदा ही
भानुमती के कुनबे सा
चाहे जब आपा खो देते
दूसरे को सुनना न चाहते
स्वनिर्णय सर्वोपरी जान
उस पर ही चलना चाहते
मार्ग चाहे हो अवरुद्ध
बिना विचारे बढ़ते जाते
जब भी घर में होते
दृश्य अखाड़े जैसा होता
पहले बातें फिर वाक युद्ध
और बाद में लाठियां भांजते
हर व्यक्ति दाव अपना लगाता
अपने को सर्वोच्च मानता
पेंतरे पर पेंतरे चलता
अहंकार से भरता जाता
बच्चे बेचारे सहमें से
पहले कौने में दुबकते
फिर पूर्ण शक्ति से रोते चिल्लाते
बिना बात मोहल्ला जगाते
बिना बात मोहल्ला जगाते
जब शोर चर्म सीमा पर होता
दर्शक भी जुड़ते जाते
बिना टिकिट होती कुश्ती का
मजा उठाने से कैसे चूकते
जब अति होने लगती
सर थामें अपने घर जाते
सर दर्द की गोली खा
फिर से वहां जाना न चाहते |
आशा
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