थकी हारी नानी बेचारी
टेक टेक लाठी चलती थी
राह में ही रुक जाती थी
बार बार थक जाती थी
नन्हां नाती साथ होता
ऊँगली उसकी थामें रहता
व्यस्त सड़क पर जाने न देता
बहुत ध्यान उसका रखता
था बहुत ही भोलाभाला
नन्हां सा प्यारा प्यारा
रोज एक कहानी सुनता
तभी स्वागत निंदिया का करता
रात जब गहराती
तभी नींद उसको आती
स्वप्न में भी नानी की यादें
कहानियों की सौगातें
अपने मित्रों में बांटता
नानी को बहुत याद करता
जब बाहर जाना पड़ता
मन साथ न देता उसका
अवसर पाते ही आ जाता
बचपन अपना भूल न पाता
अपने बच्चों में वही लगाव
जब न पाता सोचता
आखिर कहाँ कमी रह गई
उन्हें बड़ा करने में
परिवार से जुड़ न पाए
अपने अपने में खोये रहे
पाया भौतिक सुख संसाधन
पर प्यार से वंचित रहे
लगती बचपन की यादें
आधी अधूरी
नानी दादी बिना
नानी दादी बिना
धन धान्य ही मिल पाया
पर न मिला
प्यार दुलार का साया
आशा
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