03 अक्टूबर, 2015

नानी


थकी हारी नानी  बेचारी
टेक टेक  लाठी   चलती थी
राह में ही रुक जाती थी
बार बार थक जाती थी  
नन्हां नाती साथ होता
ऊँगली उसकी थामें रहता
व्यस्त सड़क पर जाने न देता
बहुत ध्यान  उसका रखता
था बहुत ही भोलाभाला
नन्हां सा प्यारा प्यारा
रोज एक कहानी सुनता
तभी स्वागत  निंदिया का  करता
रात जब गहराती
तभी नींद उसको आती
स्वप्न में भी नानी की यादें
कहानियों की सौगातें
अपने मित्रों में बांटता
नानी को बहुत याद करता
जब बाहर जाना पड़ता
मन साथ न देता उसका
अवसर पाते ही आ जाता
बचपन अपना भूल न पाता
अपने बच्चों में वही लगाव
जब न पाता सोचता 
आखिर कहाँ कमी रह गई
 उन्हें बड़ा करने में
परिवार से जुड़ न पाए
 अपने अपने में खोये रहे
पाया भौतिक सुख संसाधन
पर प्यार से वंचित रहे
 लगती बचपन की यादें
आधी अधूरी 
 नानी दादी बिना
धन धान्य ही मिल पाया
पर न मिला 
प्यार दुलार का साया
आशा

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