 
  
 हलकी सी आहट गलियारे में 
कहाँ से आई किस लिए
 किस कारण से 
लगा समापन हो गया 
निशा काल का 
तिमिर तो कहीं न था 
स्वच्छ नीला  आसमान सा  
दृष्टि पटल पर छाया 
तनाव रहित जीवन में
 यह किसने सर उठाया 
द्वार के कपाट खुले 
दर्द का अहसास जगा 
धीमी न थी गति  उसकी 
पूरी क्षमता से किया प्रहार 
तन की सीमा पार कर गई 
मन पर भी हावी हुई 
सूनी सूनी आँखों से
 देदी विदाई
वरण मृत्यु का करने को 
मार्ग बड़ा ही अद्भुद था 
आलौकिक नव रंगों से 
वर्णन करना है कठिन 
वहां तक पहुँच तो न पाए 
पर अंतर मन जान गया 
भय के लिए स्थान नहीं 
इस जग में या उस जग में 
ना कहीं माया दिखी 
न मोह ने घेरा 
सब कुछ  नया सा था 
बंद आँखों से दृश्य 
कहीं गुम हो गया 
था छद्म रूप वह 
जन्म मृत्यु  या मोक्ष का 
 या था प्रत्यक्ष या परोक्ष
 मन में उठे सवालों का 
भय ने हलकी सी
 जुम्बिश तक न दी थी 
निरीह दृष्टि तक न उठी थी 
आसपास खड़े अपनों  तक
मन में कोई हलचल न थी 
ना ही कोई सोच उभरा 
पर अब लगा
हलचल न हुई तो क्या हुआ 
 शायद मृत्यु  द्वार का पहुँच मार्ग 
अंतर मन देख पाया |
आशा 
 
 
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