दीवानगी इस हद तक बढी
भूल गई वह कहाँ चली
यदि किसी अपने ने देखा
सोचेगा क्यूँ यहाँ खड़ी |
|
मन मोर थिरकने लगता
मंथर गति से नाचता
पा कर अपनी संगिनी
अपना सब कुछ वारता |
ना पाल मोह इस देह से
ना मद से ना ही मत्सर से
परमात्मा से नेह लगा
भर जाएगा सुकून से |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: