दादी ने गुल्लक दिलवाई
बचत की आदत डलवाई
मैंने भी इसको अपनाया
चंद सिक्के जमा किये
फ्रेन्डशिप डे है आनेवाला
मन ने कहा क्यूं न खुद
फ्रेन्ड शिप बैण्ड बनाऊँ
अपने मित्रों को पहनाऊँ
छोटे छोटे उपहारों से
मनभावन जश्न मनाऊँ
सोचा पैसे मां से मांगूं
या पापा से हाथ मिलाऊँ
पर सब यही कहते
व्यर्थ है यह दिन मनाना
हमने तो कभी मनाया नहीं
फिजूल है समय गवाना
पर मन नहीं माना
अब याद गुल्लक की आई
मेरी बचत काम आई
तोड़ी गुल्लक पैसे मिल गए
स्वयं ही मित्रता धागे बनाए
अपने मित्रों को पहनाए
छोटे छोटे उपहार दिए
इस दिन को कामयाव बनाया
जिसने भी इन्हें देखा
सृजनात्मक्ता का नाम दिया
अपनी बचत के सदुपयोग पर
खुशियों का जखीरा आया |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: