बिना अलंकार श्रंगार अधूरा
बिना उसके साहित्य भी सूना
निखार रूप में
तभी आता जब रूपसी
सजी हो अलंकारों से
भाषा तभी वजन रखती
जब अलंकारों से भरी होती
भाव भी अधूरे लगते
उनके अभाव में
साहित्य का लालित्य झलकता
अलंकृत भाषा विन्यास में
हैं ये शब्दों का गहना
भाषा न निखरती इनके बिना |
आशा
बिना उसके साहित्य भी सूना
निखार रूप में
तभी आता जब रूपसी
सजी हो अलंकारों से
भाषा तभी वजन रखती
जब अलंकारों से भरी होती
भाव भी अधूरे लगते
उनके अभाव में
साहित्य का लालित्य झलकता
अलंकृत भाषा विन्यास में
हैं ये शब्दों का गहना
भाषा न निखरती इनके बिना |
आशा
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