कागज़ काले किये फाड़े
पूरी रात बीत गई
की हजार कोशिशें
कोई बात न बन पाई
एक पत्र न लिख पाई
इधर उधर से टोपा मारा
किया जुगाड़ लाइनों का
पर सोच न पाई
होगा क्या संबोधन
अनेक शब्द खोजे लिखे
पर एक भी रास नहीं आया
फिर आँखें बंद कर
उंगली से एक चुना
आँखें खोली उसे पढ़ा
वहां लिखा था my love
वही उसे भा गया
पत्र पूरा हो गया
फिर आदर्श मन पर हावी हुआ
उस पत्र को जला दिया
गलती कभी न दोहराएगी
उसने खुद से वादा किया |
आशा
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