अबला नारी बेचारी
सबला कभी ना हो पाई
हर कोशिश असफल रही
है अन्याय नहीं तो और क्या |
सीता ने दी अग्नि परीक्षा
थी सचरित्र साबित करने को
पर धोबी के कटाक्ष से
धर से निष्कासित की गई |
यह तक नहीं सोचा गया
बेचारी अबला कहाँ जाएगी
कहाँ कहाँ भटकेगी
किस का आश्रय लेगी|
दो पुत्रों को जन्म दिया
किसी तरह पाला पोसा
आखिर खुद से हारी
धरती में समा गई |
द्रोपदी ने ब्याह रचाया अर्जुन से
कुंती मां ने अनजाने में वस्तु समझ
कहा पाँचोंमें बाँट लो
वह पाँचों की पत्नी हो गई |
कितनी पीड़ा झेली होगी
जब भरी सभा में धूत क्रीडा में
युधिष्ठर ने दाव पर उसे लगाया
बाल पकड़ वहां ला
उसका चीर हरण किया गया |
उसका आर्तनाद किसी ने न सुना
वह असहाय बिलखती रही
मदद की गुहार लगाती रही
अबला थी वही रही |
आज भी सडकों पर
अनेक हादसे होते रहते
आनेजानेवाले मूक दर्शक बने रहते
नारी की अस्मिता लुट जाती
वह अवला कुछ भी न कर पाती |
पुरुषों पर कोई न बंधन
रहते सदा स्वच्छंद
सारी मर्यादा लक्ष्मण रेखा
केवल महिलाओं के लिए |
कब अबला सबला होगी
किसी से हार न मानेगी
अपने निर्णय खुद लेगी
अपनी शक्ति पहचानेगी |
आशा
पुरुषों पर कोई न बंधन
रहते सदा स्वच्छंद
सारी मर्यादा लक्ष्मण रेखा
केवल महिलाओं के लिए |
कब अबला सबला होगी
किसी से हार न मानेगी
अपने निर्णय खुद लेगी
अपनी शक्ति पहचानेगी |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: