15 जुलाई, 2016

आज




कल बीता बात गई
दिन बीता रात गई
कल की किसको खबर
क्या होगा मालूम नहीं
हम तो आज में जीते हैं
अगले क्षण का पता नहीं
आज तो आज ही है
जैसे चाहो जितना चाहो
पूर्ण उपभोग उसका करो 
मुठ्ठी भर रेत की तरह
कहीं समय न फिसल जाए
सब कार्य अधूरे रह जाएं
हम तो आज में जीते हैं
कल की किस को खबर |
आशा

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