रिश्ते
जाने अनजाने जाने कब
ये रिश्ते अनूठे
इतने अन्तरंग हुए
जान नहीं पाया आज तक
वे गले का हार हो गए |
जब भी वे करीब होते
दूरी का भय बना रहता
दूर होते ही उनसे
बेचैनी का आलम होता |
हैं कितने अनमोल वे
अब परख पाया उन्हें
हो गए इतने विशिष्ट
कि हमराज मेरे बन गए |
आशा
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