मिल गया जबसे मुझे
बैसाखी का सहारा
अब भय नहीं लगता
वहां जाने को दोबारा
शक्ति करली है संचित
कहीं घूम आने के लिए
अब ऊर्जा जुटा रही हूँ
तुम्हारे साथ जाने के लिए
जो रही यात्रा अधूरी
पूरी करने की चाह है
थी अधूरी साध अब तक
पूर्ण करने की चाह है
तभी तो पूर्ण निष्ठा से
जतन में लगी हूँ
आशा कर रही हूँ
न अधूरी प्यास है
क्यूं कि मेरे साथ तुम्हारा
मजबूत हाथ है |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |