13 मार्च, 2017

प्रेमपाश

बाल रूप तुम्हारा देखा 
सखा सदा तुमको समझा 
प्रेम तुम्हीं से किया कान्हां 
सर्वस्व तुम्हीं पर वारा |
तब भी वरद हस्त तुम्हारा 
दूर क्यूं  होता गया 
क्या कमीं रह गई पूजन में 
बता दिया होता कान्हां  |
कारण तभी समझ पाता 
परिवर्तन खुद में कर पाता
मन में पश्च्याताप न रहता 
अकारण अवमानना न सहता|
प्रेम पाश में बंध कर  तुम्हारे
धन्य में खुद को समझता 
भक्तिभाव में में खोया रहता 
शत शत नमन तुम्हें करता  |
माया मोह से हो कर दूर 
लीन  सदा तुम में रहता
कृपा दृष्टि तुम्हारी पा कर 
भवसागर के पार उतरता |
आशा





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