बाल रूप तुम्हारा देखा
सखा सदा तुमको समझा
प्रेम तुम्हीं से किया कान्हां
सर्वस्व तुम्हीं पर वारा |
तब भी वरद हस्त तुम्हारा
दूर क्यूं होता गया
क्या कमीं रह गई पूजन में
बता दिया होता कान्हां |
कारण तभी समझ पाता
परिवर्तन खुद में कर पाता
मन में पश्च्याताप न रहता
अकारण अवमानना न सहता|
प्रेम पाश में बंध कर तुम्हारे
धन्य में खुद को समझता
भक्तिभाव में में खोया रहता
शत शत नमन तुम्हें करता |
माया मोह से हो कर दूर
लीन सदा तुम में रहता
कृपा दृष्टि तुम्हारी पा कर
भवसागर के पार उतरता |
आशा
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