आधे अधूरे समस्त अंग
यदि एक अंग का छोटा सा भी भाग
अनियंत्रित हो जाए
मन विचलित हो जाए !
एक-एक अंग होता उपयोगी
यदि उसका कोई भाग खराब होता
तब शरीर पर
बड़ा विपरीत प्रभाव होता !
और तो और स्वस्थ अंग का भी
सुचारू रहना बाधित हो जाता !
विश्वास डगमगाता
और यदि वापिस आता
वह दबंगई न संजो पाता !
हर बार एक अंग के संतुलन खोने से
दूसरा भी हार जाता !
लेकिन जब किसी दिव्यांग को
सक्रिय सक्षम देखते हैं तो
मन ही मन उसे सराहे बिना
नहीं रह पाते !
और मन में विचार आता है
जब ये सब सक्षम हैं
हर कार्य करने में तो
हम जैसे सामान्य व्यक्ति
क्यों नहीं जीत सकते
किसी भी कठिनाई को !
यह सोच ही मन में
ऊर्जा भर जाती है !
उत्साह संचरित कर जाती है !
आशा सक्सेना
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