रघुवर तुमसे मैं हारी
अनुनय कभी न सुनी मेरी
ना कोई दुःख ना असंतोष
पर फिर भी कहीं कोई कमी रही
जो खल रही मुझको
जब से तुमसे दूरी पाली
ऐसा कभी सोचा न था
क्यों तुमसे दूरी पाली
अनुनय विनय और सभी जतन
निकले थोथे मैं हारी
कोई राह दिखाओ मुझको
रघुवर दूरी अब सही न जाती |
आशा
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