आज की दुनिया टिकी है
प्रगति के सोच पर
नन्हीं सी आशा पर
उसके विस्तार पर
रहता है हर मन में
एक छोटा सा बालक
जब भी आगे चलना सीखता है
असफल होता है पर निराश नहीं
दो कदम आगे बढ़ते ही
आँखों में आ जाती चमक
उत्साह कुलाचें भरता है
प्रोत्साहन के दो शब्द
उसमें भर देते हैं जोश
पर हार उसके मन को
कर देती है हताश
वह कई कई बार
वह कई कई बार
भर कर नेत्रों में जल
कभी गिरता है उठता है
नकारात्मक विचार मन में
फिर से किये यत्न में
भी सफल नहीं हो पाता
तब नन्हीं सी आशा की किरण
दबी कहीं किसी कोने में उभरती
दबी कहीं किसी कोने में उभरती
हर व्यक्ति में उठती पूरी शिद्दत से
आगे बढ़ने की ललक लिए
फिर से किये यत्न में निराश होता सोच हो यदि सकारात्मक
क्या कठिन है इसे करना
सफलता उसके कदम चूमेंगी
है यही मूलमंत्र
उन्नति की राह का
आकांक्षा पर दुनिया टिकी है
यही सोच मेरी है|
यही सोच मेरी है|
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: