होता है एहसास मन को
छोटे से छोटा
प्रत्यक्ष हो
या परोक्ष
मन होता है
साक्षी उसका
जब होती है
आहट
पक्षियों के
कलरव की
जान जाती हूँ देख भोर का तारा
मन को मनाती
हूँ
सूर्य का
स्वागत करना है
आलस्य को परे
हटा
पैर जमीन पर
रख कर
हो जाती हूँ
व्यस्त
रोज की दिनचर्या में
रोज की दिनचर्या में
व्यस्त समय
में एहसास तो
होते हैं
पर तीव्रता
कम
जानते हो क्यूँ ?
जानते हो क्यूँ ?
समय नहीं
होता
सोचने
विचारने का
उन पर
प्रतिक्रया का
यही एहसास देता
है
मन को रवानगी
मन विश्राम
नहीं चाहता
देना चाहता
है पहचान
छोटे से छोटे एहसास को
उसकी छुअन को
पर समय साथ
नहीं देता
वह आधे अधूरे
को छोड़
पलायन कर
जाता
फिर लौटकर नहीं आता
फिर लौटकर नहीं आता
कभी नीले आसमान
में
पंख फैलाए उड़ने की चाह में
टकटकी लगा मन उड़ना चाहे
कल्पना में
पहुंचे ऎसे स्थलों
पर
जहां कभी गए ही नहीं
जहां कभी गए ही नहीं
पर मन हो
जाता मगन
उसके ही से एहसास से
उसके ही से एहसास से
एहसास हो जाता है गुम
कभी स्वप्नों में कभी छुअन में
रह जाता है सुप्त भावनाओं में
है एहसास मात्र मन की सोच |
कभी स्वप्नों में कभी छुअन में
रह जाता है सुप्त भावनाओं में
है एहसास मात्र मन की सोच |
आशा
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